...

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भाई.!
तू कहाँ है कैसा है बता दे न भाई
फिर इक बार अपनी सदा सुना दे न भाई

माँ तरसती है देखने को सूरत बेटे की
उसे अपना चाँद-सा चेहरा दिखा दे न भाई

बस गया है नस-नस में काली रातों का ज़हर
तू आकर खुशियों का सूरज ख़िला दे न भाई

अब तो बरगश्ता है हमको ज़माने की हवा
इक बार तो अपने एहसासों की हवा दे न भाई

वो हलचल शरारत वो शोर चहचहे
फिर से घर को ज़िंदगी से मिला दे न भाई

सो गये हैं तेरे बाद जैसे सब घर के चराग़
आकर फिर इन चराग़ों को जगा न दे भाई

पापा टूट गये हैं कितना अब तुमसे क्या कहूँ
उन्हें गले से लगा उनका हौंसला बढ़ा दे न भाई

छोटे के कँधों पे कितना बोझ है ज़िम्मेदारी का
तू बड़ा है ये तो समझ उसका हाथ बटा ले न भाई

हम बहनों ने जो दी थी दुआएँ लम्बी उम्र की
उन राखियों की कुछ तो लाज बचा ले न भाई

हम सब मिल-बाँट के लड़ जाएँगे हर मुश्क़िल से
तू अकेला ही यूँ ख़ुद को सज़ा मत दे न भाई.!