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ज़ख्म
आदतन हम उनके दीवाने हो गए हैं,
अरसे से ख़ुद से हम बेगाने हो गए हैं,
मोहब्बत किया था टूटकर कभी इसलिए,
घायल आज हमारे हर तराने हो गए हैं,
मिल्कियत है हमारी तन्हाई रुसवाई की,
हमारे ज़ख्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं,
बसर कर रहें हैं फ़िर भी हम आज़ मुस्कुरा,
दर्द आज हमारे हर सुहाने हो गए हैं,
"सारा" के लिए अब दिन भी है बराबर,
ज़िंदगी में अश्क लाने के बहाने हो गए हैं।
© khwab
अरसे से ख़ुद से हम बेगाने हो गए हैं,
मोहब्बत किया था टूटकर कभी इसलिए,
घायल आज हमारे हर तराने हो गए हैं,
मिल्कियत है हमारी तन्हाई रुसवाई की,
हमारे ज़ख्म-ए-तमन्ना पुराने हो गए हैं,
बसर कर रहें हैं फ़िर भी हम आज़ मुस्कुरा,
दर्द आज हमारे हर सुहाने हो गए हैं,
"सारा" के लिए अब दिन भी है बराबर,
ज़िंदगी में अश्क लाने के बहाने हो गए हैं।
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