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ओढ़कर पिया के नाम की ओढ़नी
ओढ़कर पिया के नाम की ओढ़नी, गोरी चली है पिया के घर,
मालूम नहीं पिया के घर की डगर, पूछ रही पता इधर-उधर।
कानों में झुमके, माथे पर बिंदिया, हाथों में कंगन पहनकर,
चल पड़ी है वो पिया को ढूँढने देखो अनजान राहों पर।
जोगन बन गई है वो, छाया है इश्क़ का सुरूर ऐसा उस पर,
निकल पड़ी है पिया-मिलन को लोकलाज का डर छोड़कर।
कोई क्या कहेगा इसकी परवाह न कर, सारी मर्यादाएं लांघकर,
दीवानी हो गई वो पिया के नाम की, दुनिया से हो गई बेखबर।
पिया से नज़रें मिलीं हैं तबसे फ़िदा हो गई है वो उन पर,
ऐसी लागी पिया से लगन, पिया बिन जीना हो गया दूभर।
मगन हो गई है वो पिया के प्रेम में अपनी सुधबुध खोकर,
न जाने क्यों पिया को नहीं है इस बात की ज़रा भी ख़बर।
© दुर्गाकुमार मिश्रा
मालूम नहीं पिया के घर की डगर, पूछ रही पता इधर-उधर।
कानों में झुमके, माथे पर बिंदिया, हाथों में कंगन पहनकर,
चल पड़ी है वो पिया को ढूँढने देखो अनजान राहों पर।
जोगन बन गई है वो, छाया है इश्क़ का सुरूर ऐसा उस पर,
निकल पड़ी है पिया-मिलन को लोकलाज का डर छोड़कर।
कोई क्या कहेगा इसकी परवाह न कर, सारी मर्यादाएं लांघकर,
दीवानी हो गई वो पिया के नाम की, दुनिया से हो गई बेखबर।
पिया से नज़रें मिलीं हैं तबसे फ़िदा हो गई है वो उन पर,
ऐसी लागी पिया से लगन, पिया बिन जीना हो गया दूभर।
मगन हो गई है वो पिया के प्रेम में अपनी सुधबुध खोकर,
न जाने क्यों पिया को नहीं है इस बात की ज़रा भी ख़बर।
© दुर्गाकुमार मिश्रा
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