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पहचान मैं अक्षरवाणी स्याही कहलाती....!!!
कथा मोरा है निराली, कभी विनम्र वेदना, कभी विकराल रूप, कभी प्रेम प्रवाह, तो कभी सार बनजाती।
हर सोच, कथा और गाथा का दर्पण मैं;
पहचान मुझ जालिमको, जिनके जुल्म इतने, फिरभी बेड़ियों से आजाद फिरती।
हर कोरा का जिमेदार मैं, पहचान मैं कौन कहलाती.... ?? ।।१।।

है प्रवाह इतना मोरा, हर स्वर और शब्द का मैं अक्षर बनजाती।
वैज्ञानिकों का विज्ञान, शोधकर्ताओं का मानचित्र, गुरुओं का ज्ञान तो शिष्यों का सार रूप प्रतिबिंबित ज्ञाता कहलाती।
भविष्य की अभिलेखों का वर्तमानरूप ऐतिहासिक शब्द मैं;
पहचान मुझ सागर को, जिसमें छुपा हैं हर बूंदों का नजराना।
हर जीवों के कर्मों का दर्पण मैं, पहचान मैं कौन कहलाती.... ?? ।।२।।

मेरे छपे शब्दों को लकीर समझा, लोगोको अपने भाग्य का कर्म–काण्ड बनालेती।
हर बीते कालों के अभिलेखों में, सिमटे हुए सात स्वरो का परिभाषा मैं;
पहचान मुझ विकराल स्वरों की गाथा को, जो कोरा पर छप जाए, तो कभी ग्रंथ, तो कभी ब्रह्म शब्दों का विस्तार बनजाती।
हर ब्रह्म वाणी का अक्षरशब्द मैं,
पहचान मैं अक्षरवाणी स्याही कहलाती–२ ।।३।।
© 2005 self created by Rajeev Sharma