...

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मज़दूर
एक मज़दूर की होती है ख्वाहिश
दो वक़्त की रोटी की हो गुंजाइश

चल रही थी जिन्दगी किसी तरह
तभी आई महामारी की हवा

सब बिखर गया तिनके की तरह
रोटी कपड़ा मकान रह गया सपना

देश मेरा था एकता की मिसाल
आज इसी पर खड़े हुए बहुत सवाल

कहा गई वो एकता और संस्कार
क्यों मजदूर हो गया मजबूर जाने को अपने घर संसार

पहले से परिवार समझा होता
पहले से चिंता दिखाई होती

तो आज ये हाल न होता
मजदूर बेहाल न होता

जो सपने सोच कर आया था
उसका इस तरह स्वर्गवास न होता

थोड़ी सी इन्सानियत अगर बची हो स्वंम में
तो एक दूसरे की सहायता करो महामारी के इस संकट में।।


- अंकिता द्विवेदी त्रिपाठी -
© Anki