...

6 views

एक गरीब पिता की वसीयत
।। एक गरीब पिता की वसीयत ।।
गांव का गंवई एक किसान,
थोड़ी खेती उसकी जान ।
दिनरात परिश्रम करता था,
जो मिलता गुजारा करता था ।
पुत्र पुत्रियाँ दो दो थीं,
मुश्किल से जिन्दगी कटती थी ।
ऊँची शिक्षा दिलवा न सका,
कालेज तलक पहुंचा न सका ।
बेटियों की तो शादी कर दी,
बेटों का भविष्य बना न सका ।
बस खेती एक सहारा था,
इससे ही सबका गुजारा था ।
चिंता से ग्रस्त सदा रहता,
बेटों के लिए सोचा करता ।
पति-पत्नी मिल बैठे एक दिन,
अपना जीवन है कितने दिन?
चलो वसीयत लिख दें अब,
बच्चों के हवाले कर दें सब ।
अपने बच्चे संस्कारी हैं,
दोनों ही आज्ञाकारी हैं ।
फिर लिखा वसीयत में अपने,
पूरे न हुए अपने सपने ।
यह अंतिम इच्छा हमारी है,
अब तुमपर जिम्मेदारी है ।
कुछ तामझाम तुम करना नहीं,
अंतिम संस्कार कर देना यहीं ।
छोटे से जमीन के टुकड़े को,
तुम अपने लिए बचा लेना ।
कहने सुनने पर मत जाना,
साधारण क्रिया करा देना ।
आत्मा को शांति मिलेगी तभी,
कुछ कर्ज नहीं लेकर करना ।
© Nand Gopal Agnihotri