अपने अपने हिस्से की धूप
सबके हिस्से आती अपनी अपनी धूप।
ओस की बूंदों को, फूलों को और पत्तों को,
मुंडेर पर बैठे पंछियों को और अहाते में सुस्ताते कुत्तों को।
धूल में नहाती चिड़िया के पंखों को सहलाती,
कलियों को छूकर, हौले से फूलों को खिलाती।
थोड़ी सी धूप खिड़की से आती,
सोए हुए बच्चों के चेहरे पर जा अटकती
थोड़ी सी धूप तुलसी चौरे से होती हुई
बालकनी में टहलती।
सबको मिलती अपने अपने हिस्से की धूप।
पर उसका क्या, जो मुंह अंधेरे उठकर काम में जुट जाती
बच्चों,...
ओस की बूंदों को, फूलों को और पत्तों को,
मुंडेर पर बैठे पंछियों को और अहाते में सुस्ताते कुत्तों को।
धूल में नहाती चिड़िया के पंखों को सहलाती,
कलियों को छूकर, हौले से फूलों को खिलाती।
थोड़ी सी धूप खिड़की से आती,
सोए हुए बच्चों के चेहरे पर जा अटकती
थोड़ी सी धूप तुलसी चौरे से होती हुई
बालकनी में टहलती।
सबको मिलती अपने अपने हिस्से की धूप।
पर उसका क्या, जो मुंह अंधेरे उठकर काम में जुट जाती
बच्चों,...