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ग़ज़ल
पेश ए ख़िदमत है आज की ताज़ा ग़ज़ल~
कई दिन से हम इल्तिजा कर रहे हैं।
वो हां कर रहे हैं, न ना कर रहे हैं।
किये जा रहे हैं हम उनसे वफाएं,
हमें गर्ज़ क्या है वो क्या कर रहे हैं।
वो जब चाहें जो इम्तिहाँ मेरा ले लें,
भला हम उन्हें कब मना कर रहे हैं।
जवाब एक दिन सब इकट्ठे ही देंगे,
अभी प्रश्न उनके जमा कर रहे हैं।
उन्हें ज़ुल्म करना है करते रहेंगे,
मगर उनकी ख़ातिर दुआ कर रहे हैं।
वो आएगा सैलाब बह जाओगे तुम,
अभी आंसुओं को जमा कर रहे हैं।
उन्हें माफ़ करना खुदाया कि उनको
पता ही नहीं है वो क्या कर रहे हैं।
© इन्दु
कई दिन से हम इल्तिजा कर रहे हैं।
वो हां कर रहे हैं, न ना कर रहे हैं।
किये जा रहे हैं हम उनसे वफाएं,
हमें गर्ज़ क्या है वो क्या कर रहे हैं।
वो जब चाहें जो इम्तिहाँ मेरा ले लें,
भला हम उन्हें कब मना कर रहे हैं।
जवाब एक दिन सब इकट्ठे ही देंगे,
अभी प्रश्न उनके जमा कर रहे हैं।
उन्हें ज़ुल्म करना है करते रहेंगे,
मगर उनकी ख़ातिर दुआ कर रहे हैं।
वो आएगा सैलाब बह जाओगे तुम,
अभी आंसुओं को जमा कर रहे हैं।
उन्हें माफ़ करना खुदाया कि उनको
पता ही नहीं है वो क्या कर रहे हैं।
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