/ग़ज़ल : ग़लत बात है कि मोहब्बत नहीं है/ बह्र : १२२/१२२/१२२/१२२
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असल में किसी से मुहब्बत नहीं है
उन्हें दिल लगाने की आदत नहीं है
अभी तो मिले हो अभी जा रहे हो
घड़ी वस्ल की है ये हिजरत नहीं है
ये कहते हुए मैं मुसलसल मरा था
मुझे अपनी चाहत से उल्फ़त नहीं है
उसे यार मत रोक करने दे मन की
वो दीवानगी है वो वहशत नहीं है
बहुत कुछ है खाने को परदेस में...
असल में किसी से मुहब्बत नहीं है
उन्हें दिल लगाने की आदत नहीं है
अभी तो मिले हो अभी जा रहे हो
घड़ी वस्ल की है ये हिजरत नहीं है
ये कहते हुए मैं मुसलसल मरा था
मुझे अपनी चाहत से उल्फ़त नहीं है
उसे यार मत रोक करने दे मन की
वो दीवानगी है वो वहशत नहीं है
बहुत कुछ है खाने को परदेस में...