...

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उस पहली रात...
मैंने उसकी
पेशानी को चूमने की बजाय
उसके पाँव की उंगलियों
की पौरों को चूमा

उसके पैरों की उंगलियों
के नाखूनों में नैल पॉलिश नहीं थी
एक धूल थी जमी हुई
जो केवल मुझसे मिलने
के लिए चलने पर
उसके पाँवों से लिपटी थी

उसके होंठो पर न सुर्खी थी
न गालों पर लालिमा
उसके होठों पर
एक पपड़ी जमी थी
जो लंबे सफर में
पानी न मिलने के कारण
सूख आये होंठो पर जम गई थी

उसके बाल अस्त व्यस्त थे
न उनमें से मादक खुशबू आई
न उन्होंने उड़कर मेरे गालों को छुआ
उसके उलझे हुए बाल बता रहे थे
मुझ तक आने के लिए
कितनी उलझनों से गुजरी है वो

मैं इससे पहले की उसके बाल सुलझाता
उसने प्यार से मेरे बालों को सहला दिया
मेरी आँखों से दो मोती बरसे
उसके पाँवों की पौर भिगो गए
उसके नाखूनों पर लगी मिट्टी
धो गए मेरे आँसू
वो मेरे आँसू पौंछ रही थी
मैं उसके पाँवों में लगी धूल
बस उस रात यही सब हुआ
जब हम मिले थे
पहली बार एक दूसरे से.....

संजय नायक"शिल्प"
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