...

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जीवन एक कला
वो अधूरी कहानी सुनाएँ तो क्यों
खत लिखे हैं किन्हें हम बताएँ तो क्यों
हाँ रोज मिलते मोहब्बत की कलियों से पर
संस्कारों को अपने भुलायें तो क्यों ||
© द दुर्गेश दीक्षित