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" बीस दोहे - चाणक्य नीति पर "
मूरख झेलें दुख सदा यही जगत की रीत ।
सही गलत का फैसला करने से हो जीत।।

बुरे वक्त में धन सदा आता अपने काम ।
अपने दुश्मन जब बने ये देता आराम ।।

अपने गिरगिट जब बने आँखें ले वे फेर ।
संचितधन तब मित्र बन करवाए सुखसैर ।।

जहां जरूरी हो करें हम धन का उपयोग ।
साधन उसको मान के करें जरूरी भोग ।।

नहीं दिखावा हम करें धन का कभी सुजान ।
बुद्धिमान करता नहीं गुण का कभी बखान ।।

धन से पद से व्यक्ति की नहीं सफलता जान ।
मरने पर यशगान हो उसे सफल तू मान ।।

मार्ग सत्य का ही हमें मंजिल पर पहुंचाए ।
सत्यमार्ग के पथिक से कौन जीतने पाए ।।

जो जनहित के वास्ते करता बुद्धि प्रयोग ।
उसको सब सिर पे बिठा करते हैं सहयोग।।

चाहत हो सम्मान की पहले दो सम्मान ।
कुचली रोंदी पांव में पगड़ी क्यों दे मान।।

जिम्मेदारी का करे ,जो पालन दिन रात ।
उसको मिलती है सदा खुशियों की सौगात ।।

योगी या विद्वान जो, बाँटा करते ज्ञान ।
भ्रमण लाजमी मानिए उनके लिए सुजान।।

परेशानियों का करें ,अच्छे मित्र निदान ।
काम बिगाड़ेंगे बुरे ,क्या इसका है भान।।

कड़वे वचनों ने किया है रब को नाराज ।
दाने दाने को हुआ शख्स वही मोहताज ।।

जो जीने के वास्ते खाते रहे निरोग ।
जो खाने के ही लिए जीते पाते रोग।।

मीठी बातें जो करें करें पीठ पर वार ।
उन्हें छोडना ही भला नहीं मित्र वे यार।।

राज राज ही गर रहे होते शुभ परिणाम ।
राजफाश जिनका हुआ बुरा हुआ अंजाम।।

गंदे लोगों से सदा, रहती लक्ष्मी दूर ।
साफ लिबासों का उसे साथ सदा मंजूर।।

जो दिन में सोता रहे, रहे गरीबी पास ।
कर्मठ का घर ही बने लक्ष्मी का आवास।।

बिना किसी उद्देश्य के भ्रमण करे जो नार।
बदनामी उसको मिले पाए दुक्ख अपार ।।

अगर भ्रमण राजा करें ,पाता वो सम्मान ।
जो सुखदुःख में साथ हो पाए क्यों ना मान।।