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EK MAZDOOR KI MAZBOORI
मज़दूर हूं मै, मज़दूरी करता हूं;
मज़बूरी में अपनी ज़िन्दगी जीता हूं;
गरीबी तो अपना साथी है;
तकलीफ़ में ही जीना पड़ती है;
कहा जाता है कि हर सुबह एक नई उम्मीद लाती है;
पर हमारी किस्मत तो कुछ और ही बया करती है;
बचपन से ही हम काम करना सीख जाते है;
शहर - शहर भटक अपनी ज़िन्दगी गुजारते है;
आज पूरा देश में लॉकडाउन है;
पर हमारी तकलीफों के बारे में कौन सोचता है;
अरे हम तो मज़दूर है;
हमे तो ऐसे ही जीना है;
कभी तो हम इस देश को चलाने का नींव बन जाते है
और आज मुसीबत में मज़दूर के नाम पे अनदेखा किए जाते है;
हम भूखे है, आज हमारी जान पर बन आई है;
पर अब भी कुछ लोग इसमें अपनी राजनीति किए जाते है;
बच्चा भूख से रोता है,पर हम बेबस और लाचार है;
हम तो मज़दूर है,हमे तो ऐसे ही जीना है;
सोच के आए थे,शहर में अपनी ज़िन्दगी बदल जाएगी;
पर कहा जानते थे कि ये शहर एक दिन वापस अपना गांव भेज देगी;
हे भगवान ये कैसी ज़िन्दगी तूने दी है;
क्यों मुझे मज़दूर बना कर इस दुनिया में भेजी है;
अब जब भेजा ही है,तो तू ही मुझे रास्ता दिखा दे;
इस मुसीबत से निकाल,अपने घर तक पहुंचा दे;
मज़दूर हूं मै, मज़दूरी करता हूं;
मज़बूरी में अपनी ज़िन्दगी जीता हूं!