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तुम्हारा प्रेम
रहस्यमई, सम्मोहक, जादुई सा है तुम्हारा प्रेम
कभी खुलकर, कभी सौ परदो के पीछे नजर आता है
तुम्हारा प्रेम
व्याख्यायित करने की कोशिश में
भाप की बूंद सा वाष्पित हो ,ओझल सा हो जाता है
तुम्हारा प्रेम
देशनिकाला सी लगती है ,ये दुनियां जब मुझ को
काया से जुदा ,रूहों को आकाशीय विचरण करवाता है
तुम्हारा प्रेम
तुम्हारे स्पर्श की छुअन ,मेरे सजल नयन की प्रतीक्षा को
रोज नए जीवनरक्षक अनश्वर प्रेम का उद्भव कराता है
तुम्हारा प्रेम
बेमौसम में मन के द्वारे सुगन्धित प्रसून है बिखेरता
पतझड़ के मौसम में सावन का अहसास कराता है
तुम्हारा प्रेम
रात की सर्द ठंडी हवाओं में रुई के नर्म फ़ाहे हो जैसे
लहरों में कड़कती बिजली की तरंग ,रोमांचित सा है
तुम्हारा प्रेम
मिश्रित स्वाद, गंध,रंग आसुत , किण्वित पेय सा
अलौकिक ,नशीली, झलकती, बहकाती मदिरा सा है
तुम्हारा प्रेम
वृक्ष हीन भूमि जैसे बन पिपासु चूमती है बसंत को
चुंबकीय आकर्षण सा ,दिलकश,चित्ताकर्षक सा है
तुम्हारा प्रेम
© ऋत्विजा
कभी खुलकर, कभी सौ परदो के पीछे नजर आता है
तुम्हारा प्रेम
व्याख्यायित करने की कोशिश में
भाप की बूंद सा वाष्पित हो ,ओझल सा हो जाता है
तुम्हारा प्रेम
देशनिकाला सी लगती है ,ये दुनियां जब मुझ को
काया से जुदा ,रूहों को आकाशीय विचरण करवाता है
तुम्हारा प्रेम
तुम्हारे स्पर्श की छुअन ,मेरे सजल नयन की प्रतीक्षा को
रोज नए जीवनरक्षक अनश्वर प्रेम का उद्भव कराता है
तुम्हारा प्रेम
बेमौसम में मन के द्वारे सुगन्धित प्रसून है बिखेरता
पतझड़ के मौसम में सावन का अहसास कराता है
तुम्हारा प्रेम
रात की सर्द ठंडी हवाओं में रुई के नर्म फ़ाहे हो जैसे
लहरों में कड़कती बिजली की तरंग ,रोमांचित सा है
तुम्हारा प्रेम
मिश्रित स्वाद, गंध,रंग आसुत , किण्वित पेय सा
अलौकिक ,नशीली, झलकती, बहकाती मदिरा सा है
तुम्हारा प्रेम
वृक्ष हीन भूमि जैसे बन पिपासु चूमती है बसंत को
चुंबकीय आकर्षण सा ,दिलकश,चित्ताकर्षक सा है
तुम्हारा प्रेम
© ऋत्विजा
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