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संगति का असर
जीवन एक सत्संग है। जीवन एक कला है। जीवन परिष्कृत व्यवहार की प्रक्रिया है।अर्थात संस्कारों सहित अच्छा साथ। आज मनुष्य के जीवन को उत्कृष्ट बनाने में मेरे अनुसार प्रमुख रूप से परिवार,गुरु और अच्छी संगत इन तीनों का महत्वपूर्ण स्थान है। प्राचीन समय में व्यक्ति के व्यवहार में सबसे अधिक महत्त्व गुरु का होता था। कहा गया है कि जहाँ गुरु का आदर नहीं होता वहाँ अंधकार छाया रहता है। लेकिन आज गुरु सिर्फ मार्गदर्शक की भूमिका में रह गया है। क्योंकि आज व्यक्ति गुरु को मात्र डिग्री का साधन मानते है। इसी कारण से आज व्यक्ति पद तो प्राप्त कर लेता है लेकिन व्यवहार एवं संस्कार नहीं।
अत: व्यक्ति आज समाज में वही व्यवहार स्थापित करता है जो अपने परिवार और संगति से सीखता है। प्राय: यह देखने में आ रहा है कि सोशल मीडिया पर संस्कारों को वास्तविक एवं जमीनी स्तर पर दिखावटी मात्र बना दिया है। माता-पिता, परिवार के प्रति प्रेम यथार्थवाद कम बल्कि छायाचित्र के माध्यम से अधिक मिलता है। वह व्यवहारशील, संस्कारित होने का परिचय देता है। लेकिन मुझे लगता है कि व्यक्ति के संस्कारित एवं विनम्रशील होने का पता उसके द्वारा समाज में किए गए व्यवहार से चलता है। कभी-कभी इंसान छोटी सी डिग्री प्राप्त कर उसके अहं से समाज में लोगों के साथ अपमानजनित भाषा का प्रयोग कर अपने और अपने परिवार एवं उसकी संगति के लक्षणों एवं संस्कारों का परिचय करवा देता है।

डिग्रियों से पद एवं पैसा मिल सकता है,संस्कार नहीं। संस्कार तो उसके परिवेश में स्थापित आचरण से मिलता है। अच्छे संस्कार एवं अच्छा आचरण उसे उत्कृष्ट व्यक्तित्व की डिग्री प्रदान करता है।
© 📚✍️कवि R.K MEENA