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मजदूर
देश का मजदूर हूं ,
वक़्त और हालात से मजबूर हूं
दिहाड़ी से पेट भरता हूं
संघर्ष की रोटी खाता हूं ,
उम्मीदों की छत बनाता हूं
रिश्तों का बोझ ढोता हूं ,
शहर-शहर भटकता हूं
भूख-प्यास से बेहाल हूं ,
मदद की भाव रखता हूं
पाषाण बनें इंसानों से
व्यथा का आक्रोश बताता हूं ,
हृदय की भावना बोलता हूं
मन की गठरी खोलता हूं ,
सच्चाई के पथ पर चलता हूं
सरकार के वादों को टटोलता हूं ,
स्वयं की पहचान को देखता हूं
जरूरतमंदों की टोली में चलता हूं ,
भिन्न-भिन्न त्योहार पर
वतन को कदमों को नापता हूं
देश का मजदूर हूं ,
वक़्त और हालात से मजबूर हूं
श्रम से परिपक्व हूं ,
गर्व से जीवन जीता हूं
सख़्त परिश्रम में खुशी ढूंढता हूं ।
© -© Shekhar Kharadi
तिथि-१/५/२०२२, मई
वक़्त और हालात से मजबूर हूं
दिहाड़ी से पेट भरता हूं
संघर्ष की रोटी खाता हूं ,
उम्मीदों की छत बनाता हूं
रिश्तों का बोझ ढोता हूं ,
शहर-शहर भटकता हूं
भूख-प्यास से बेहाल हूं ,
मदद की भाव रखता हूं
पाषाण बनें इंसानों से
व्यथा का आक्रोश बताता हूं ,
हृदय की भावना बोलता हूं
मन की गठरी खोलता हूं ,
सच्चाई के पथ पर चलता हूं
सरकार के वादों को टटोलता हूं ,
स्वयं की पहचान को देखता हूं
जरूरतमंदों की टोली में चलता हूं ,
भिन्न-भिन्न त्योहार पर
वतन को कदमों को नापता हूं
देश का मजदूर हूं ,
वक़्त और हालात से मजबूर हूं
श्रम से परिपक्व हूं ,
गर्व से जीवन जीता हूं
सख़्त परिश्रम में खुशी ढूंढता हूं ।
© -© Shekhar Kharadi
तिथि-१/५/२०२२, मई
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