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मनोज्ञ देखों सावन है आया
अभ्र के श्यामल वीथिका पर,
नृत्य कर रहा है वारिधर।
घनप्रिया की आभा से ऋत
हो रहा गगन,
आल्हादित करते चौमासा
कामिनि छम-छम।

रिमझिम रिमझिम फुहारों की
सहनाई,
जिससे हर्षित होती धरती माई।
मन मयूर आनंद अभिभूत हुआ,
सृष्टि का रंग क्या खूब है निखरा।

चहक रहे है पंछिया पेड़ो पर,
कोयल गाती राग मल्हार।
मनोज्ञ देखों सावन है आया,
लेकर हरियाली और बहार।

खिल रही है कलिया होकर
रूपगर्विता,
खुमार चढ़ रहा उनपर नवयौवन का।
प्रियतम मधुप के मिलन के लिए
जो थी तड़पी,
प्यास बुझ रही उनकी वर्षों की।

छूकर जाता जब चपल समीर,
सुंदर कलिका को मिल गया हो
जैसे मीत।
अधरों पर लेकर मीठी तबस्सुम,
रुप सौंदर्य की वह मल्लिका।

इंद्रधनुष की अनोखी दीप्ती,
आसमान में सतरंगी झूला
झूलती।
वन उपवन सौरभ हुए प्रसूनों से,
सुरभित मन हो रहा प्रकृत
अनेक रंगों से।

तृष्णा तृप्त हुई तुषार्थ पपीहे की,
हरित वसन ओढ़े हैं देखो वसुधा
रानी।
खुशियों के गान गाकर कह रहा
है प्रकृत,
कितनी प्यारी धरा नभ की प्रेम
कहानी।

मौलिक एवं स्वरचित
सर्वाधिकार सुरक्षित
© ® आलोक पाांडेय
गरोठ, मंंदसौर, (मध्यप्रदेश)
तिथि –२३/०५७/२०२२

विक्रम संवत २०७९



© Alok1109Archana

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