...

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एक नज़्म ,स्वरचित
सुकून पा लेने दे अभी ज़िंदगी
शोखियां सजा लेने दे अभी ज़िंदगी
ये ऊंचाईयां तो कदमों से नाप ही लेंगे हम
ख्वाबों की बुलंदियां आज़मा लेने दे अभी ज़िंदगी

नींदें मुक्कमल हो जाने दें अभी ज़िंदगी
रास्ते मखमल हो जाने दें अभी ज़िंदगी
ये गहन तो नज़रों से ही पार‌ कर लेंगे हम
मंज़िल को सफर हो जाने दे अभी ज़िंदगी

तबियत को दुरुस्त हो जाने दें अभी ज़िंदगी
दर्द को सुस्त हो जाने दें अभी ज़िंदगी
ये सदमे तो दिल में उतार ही लेंगे हम
ज़ख्मों को खुश्क हो जाने दें अभी ज़िंदगी

बेहतर हो जाने दें अभी ज़िंदगी
सुनहरी दोपहर हो जाने दें अभी ज़िंदगी
इन अंधेरों से तो निकल ही जाएंगे हम
शामों को सहर हो जाने दे अभी ज़िंदगी

~Hemendra Parmar