...

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सोंच जरा....
मुश्किल राहों पर चलना आसान नहीं
आगे बढ़ते ही रहना एक अरमान नहीं

दूर बहुत जाना है मुसाफिर सोच जरा
कुछ पल रुकने में कोई नुकसान नहीं

छूट गए कई प्यारे याद कभी तो आयेंगे
बढ़ना है आगे गर बैठ कर गुणगान नहीं

मंजिल को गर पाना है चलते ही जाना है
पहुंच शिखर पर करना कोई अभिमान नहीं

साथ चलनेवाले गर ना निभाए साथ तो क्या
एक अकेला चलता चल मन में लिए मलान नहीं

रब का नूर मेहनत में देख रब की रहमत पा ले
फिर मुकाम को पाकर भी होगा तू हैरान नही

जो पाया है देख जरा कुछ भी साथ नहीं जाता
चंद पलों के मेहमान हैं हम सदियों का सामान नहीं



© Abhi