...

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मैं तो खोजू सुदामा को...
वे चर्चाएं करते है....
सुदामा से मित्र तो कई मिल जाते हैं,
किंतु कर्ण सा मित्र एक नहीं मिलता,
(जैसी नज़र वैसा नज़ारा😊)
व्यापारी तो प्रेम और मित्रता के बाजार में भी व्यापार ही खोजता है!
खैर हस कर मैं कहती हु...
कर्ण सा मित्र मिलना भी नहीं चाहिए,
अहसान तले अधर्मी के अधर्म में साथ देने वाला मित्र होना भी नहीं चाहिए।
और सुदामा सा मित्र तुम्हें मिल भी नहीं सकता...
सुदामा सा मित्र पाने के लिए कृष्ण सा भाग्य चाहिए...
कृष्ण सा भाव चाहिए...
तुम उसकी दरिद्रता को आंकते हो....
किंतु उसकी उदारता ने कृष्ण को जीत लिया..
उसकी संपनता देखने के लिए कृष्ण कि आंखे चाहिए....
सुदामा सा सुंदर व्यक्ति नहीं जन्मा।
तुम कृष्ण की ओर आकर्षित होते हो,
मेरी नज़रे तो सुदामा की ओर खींचती हैं....
जिसका भक्त स्वयम भगवान हो गया..
क्या वो व्यक्ति रहा होगा!
कितना प्यारा उसका व्यक्तित्व रहा होगा...
तुम कहते हो सुदामा कितना भाग्यशाली था..
ना! मेरी नज़र से पूछो...
यह तो कृष्ण का भाग्य था जिसने सुदामा सा मित्र पाया...
तुम कृष्ण के व्यभ पर मंत्रमुग्द होते हो,
और कृष्ण सुदामा की निश्छलता पर लुट जाता हैं।😊
आह...! सुदामा सा सुंदर व्यक्ति नहीं दुजा....!
पाने का भोग तुमने खुब किया...
कभी देने के भोग को जानो.....!
कृष्ण भाव से किसी पर लुट कर देखो, मिट कर देखो...
लुट जाने का आनंद क्या है वह ज़रा कृष्ण से तो पूछो...! 😊
सुदामा सा सुंदर व्यक्ति नहीं दूजा!
#truth #innocence #purity and #simplicity #integrity.
कौन प्रेम है जो इन पर पिघल न जाए...लूट न जाए...!
और कृष्ण तो परम प्रेम ठेहरा।
तुम कहते हो सुदामा दरिद्र था,
मैं कहती हु सुदामा सा संपन व्यक्ति नहीं कोई दुजा...
महज़ बात इतनी तुम जिससे व्यापार हो सके उसे धन समझते हो,
कृष्ण की आंखे जो व्यापारी का व्यापार गिरा दे उसे धनवान समझती हैं।
तुम कृष्ण को पूज के भी, कृष्ण से न हो सके ...
और देखो तुम्हारा प्रभु, सुदामा को पूज के सुदामा सा हो गया।
......उसकी सहजता और सरलता ने परमात्मा के होने को भी मिटा दिया...!
परम को भी शून्य कर दिया। 😊
और तुम तो कृष्ण को पूज कर भी 'मैं’ के होने तक को न मिटा सके।
स्व से ज़रा नीचे भी न उतर सके.... और तुम बात करते हो सुदामा की।
मैंने कभी कृष्ण को उतना आकर्षक न पाया,
जितना आकर्षक मैंने सुदामा को पाया....
ये मेरी आँखो से पूछो...
सुदामा सा सुंदर व्यक्ति नहीं कोई दुजा!
मगर... भाग्यशाली हु मै के इस जिवन मे भी कुछ सुदामा के अंश पाए है मैंने....
पूरे जीवन भर की तपस्या भी उन पर लुट जाए तो हर्ज नहीं...
प्रेम उनसे करो...
मित्र उन्हे बनाओ जिन्हें देकर भी तुम्हें एहसास भी न हो कितना दे दिया..
महज़ दिल मे हो और कितना दे सकते हो...
संबंध भी साधना जैसे ही होते है।
शिद्दत से निभाने पड़ते है।
खेल नहीं...
तप ही है।
_ D💚L