...

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महफिलों से दूरी सी रखता हूं,,,
दिल ए पाख हूं मैं और जुबां शीरी सी रखता हूं,
बेवस्ल नुमाइशों से तश्ख़ीस फकीरी सी रखता हूं,

और सस्ती सी रखता हूं दिल ए मिल्कियत अपनी,
लोग कहते हैं मैं इश्क से वाफिर हक़ीरी सी रखता हूं,

और इतना सस्ता भी नहीं बुलंद ए मयार अ साकी,
हूं अहल ए हुनर दिलकशी में, मैं अमीरी सी रखता हूं,

लिख लेता हूं थोड़ा बहुत जब आंखें भर सी जाती हैं,
यूं तो पसंद हैं गजलें मगर महफिलों से दूरी सी रखता हूं,

और भटक जाता हूं कई मर्तबा मैं अनजान राहों पर,
अहल ए नजर को इसलिए भी मैं असीरी सी रखता हूं,

बस इतना जान लो तुम मेरे बारे अ प्रदीप मैं शायर नहीं,
गर बन आए मयार पे तो लफ्जों में नज़ीरी सी रखता हूं,

समझ लो की मिलता हूं जमाने से अपने मुताबिक अब,
छोड़ गैरों को मस्तूर मैं खुद से हम-सफ़ीरी सी रखता हूं,


© #mr_unique😔😔😔👎