...

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बस मन नहीं 🙃🙃
दिन के उजियारे में
गाड़ियों के कोलाहल में 🙃
कान में गूंजती आवाजों में
छुप जाता है
अन्तर में चलता द्वंद्व 🙃

पर जब रात का
अँधियारा आता है 🥺
पंछी घोंसले में
सो चुके होते हैं 😎
तब शांत से मन की
लहरों में पत्थर सा उछलता है 🙂

वो सारे अवसाद जो
बेतरतीब तरह से
नेपथ्य में छुपा दिये थे 😥😥
ताकि कोई देख ना सके
मानव मन का कोमल पक्ष 😕

अचानक फैलाने लगते हैं
अपना प्रभाव 🙄😈😈
और महसूस होने लगता है
सबके साथ होते हुए भी
सब कुछ होते हुए भी
अक्सर एक अभाव 😌😌

क्या नाम दूँ इसे 🤐
अक्सर जिन भी लोगों से
पूछा तो उत्तर में पाया
पता नहीं क्या है 😫
बस मन नहीं 🙃

कहीं ना कहीं हम सबने
महसूस किया होता है
ये पहलू 🙂
जब बस यही जवाब होता है
हर प्रश्न का मन नहीं ❣️

क्या है
क्यों है
नहीं पता बस मन नहीं 🙃

© सौ₹भmathu₹