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" तुम "..... By-The Sagar Raj Gupta {श्रृंगार रस कवि}.
मैं जिसे रोज सुबहों शाम वो किताब हो तुम,
जिसे देखने मात्र से ही पूरे शरीर में नशा चढ़ जाए वो शराब हो तुम,
जो मेरे हर कार्य के सफलता पर मिले वो ख़िताब हो तुम,
मेरा हर प्रश्न तुमसे ही जुड़ा और उन सबका जबाब हो तुम।

मेरी दुनिया हो तुम, मेरी काम हो तुम,
मेरा हर चीज तुमसे जुड़ा मेरी नाम हो तुम,
तुम ही मेरी सुबह और शाम भी हो तुम,
तुम ही मेरी भजन और जाम हो तुम।

तुम ही मेरी धड़कन और मेरी साँस हो तुम,
मेरे लहू के क़तरा-क़तरा और मेरी आस हो तुम,
मेरे जीवन की सबसे बड़ी खुशी और मिठास हो तुम,
मेरे साथ अभी है ही नही कोई , मेरे लिए खास हो तुम।

मेरी यादों में तुम और मेरे सपनो में तुम,
मेरे नींदों में तुम ,मेरे अपनो में तुम,
मेरे ख्यालो में तुम ,मेरे जज्बातों में तुम,
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