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मन बंजारा
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
उलझी उलझी जिन्दगी में
मुस्कुरा रहा है कोई,
बेताबी का मन्जर है
फिर भी हंस रहा है कोई;
क़दम क़दम पर बगावत है
अजनबी ना कोई,
रुठ गई है ज़मीं मेरी
फ़िर भी अनजानों में
अपना सा है कोई;
वक्त वक्त के सौदें है बाजारों में
अब सोदागर है कोई,
सफ़र के राही है हम
मिल ही जाते हैं हमराही कोई...!!
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा कोई,
उलझी उलझी जिन्दगी में
मुस्कुरा रहा है कोई,
बेताबी का मन्जर है
फिर भी हंस रहा है कोई;
क़दम क़दम पर बगावत है
अजनबी ना कोई,
रुठ गई है ज़मीं मेरी
फ़िर भी अनजानों में
अपना सा है कोई;
वक्त वक्त के सौदें है बाजारों में
अब सोदागर है कोई,
सफ़र के राही है हम
मिल ही जाते हैं हमराही कोई...!!
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