द्रौपदी का चीरहरण
द्रौपदी का चीरहरण एक बार नही, सौ बार हुआ,
भरी सभा में भी उस पर अत्याचार हुआ,
मौन तभी थे, मौन अभी हैं,मौन ही रहेंगे,
लेकिन
द्रोपदी के वंशज इस अत्याचार को नही सहेंगे,
उन्हें प्रतिदिन अंगारों पर चलना होगा,
सर उठे जहां कुदृष्टि से
उसे
वहीं कुचलना होगा,
इन हत्यारों का तुम संहार करो,
उर निज अपमान का ज्वार भरो ,
तुम्हीं बनो...
भरी सभा में भी उस पर अत्याचार हुआ,
मौन तभी थे, मौन अभी हैं,मौन ही रहेंगे,
लेकिन
द्रोपदी के वंशज इस अत्याचार को नही सहेंगे,
उन्हें प्रतिदिन अंगारों पर चलना होगा,
सर उठे जहां कुदृष्टि से
उसे
वहीं कुचलना होगा,
इन हत्यारों का तुम संहार करो,
उर निज अपमान का ज्वार भरो ,
तुम्हीं बनो...