...

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ग़ज़ल
बारिशों में भीग कर मैं कपकपता भी नहीं हूँ
इतना पत्थर हो गया हूँ थरथराता भी नहीं हूँ

लोग कहते हैं मुझे हंसने की बीमारी है हमदम
देख मुझ में झाँक कर मैं मुस्कराता भी नहीं हूँ

कौन याँ आकर संभालेगा मेरी मदहोश बाहें
बस इसी डर से कभी मैं लड़खड़ाता भी...