...

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स्नेह की समाप्ति....
मैं स्तब्ध और नि:शब्द हूँ
तुम्हारे इस कृत्य से.....
आभास तो मुझे भी था
की इसके सुखद
परिणाम तो नहीं आने वाले है...!!
लेकिन अनायास ही
यूँ तुम्हारा मुकरना
मेरे हृदय को वेधित कर रहा है ....!!
क्रंदन करूँ भी तो मैं किसके पास
क्योंकि मेरी इन चारदीवारी
के बाहर की दुनिया तो
सिर्फ और सिर्फ तुम हो...
ना ना ना दुनिया थी .....!!
पर अफसोस अब वो भी नहीं रही.....
और वैसे भी विलाप का
वक़्त भी तो नहीं रहा.......!!
क्योंकि ये संताप सहृदय में
समाप्त होने को अग्रसर है ....!!


© कुन्दन