...

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मुफ़लिसी.....
कभी उनसे जाके पूछो मुफ़लिसों पे क्या गुज़रती है
जिनकी सारी रात भूख की अग्नि में जलती है !! १ !!

सच कहा कि किस्मत महलों पर करती है राज़
और काबिलियत सड़को पर ही तमाशा करती है !! २ !!

वो आबरू-ओ-इमान के खातिर क्या-क्या ना करती
पर बेवा की लाचारी को वो अबला ही समझती है !! ३ !!

चाँद जैसी भी है बेटी अगर किसी मुकलिश की तो
चाह कर भी बड़े वो घरों की रौनक नहीं बनती है !! ४ !!

चाहे लाख भारत को डिजिटल बना लीजिए साहब मगर
रोटी अभी भी गूगल से डाउनलोड नहीं होती है !! ५ !!

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© कुन्दन प्रीत