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#दूर....✍️
#दूर
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा है कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा है कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा है कोई,
क्षण प्रतिक्षण का सुख ढूंढ रहा है कोई।
प्रीत का गीत सुना कर भी रो रहा है कोई
दूजे को सुख देने को दुख झेल रहा है कोई,
यहां नहीं है कदर किसी को कब जागी कब सोई,
इस दुनिया में संतोष उसी को धीर धरे है जोई ।।
जब दुनिया में आए थे, जग हंसा हम रोई ,
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोई,
ज्यादा सोच विचारी से काम न बनता कोई,
सुमिरन करले "बांके " को, वो करे सो होई।।
© Tarun.k.pathak
दूर फिरंगी बन कर घूम रहा है कोई,
मन बंजारा कहता है ढूंढ रहा है कोई;
वृक्ष विशाल प्रीत विहार कर रहा है कोई,
क्षण प्रतिक्षण का सुख ढूंढ रहा है कोई।
प्रीत का गीत सुना कर भी रो रहा है कोई
दूजे को सुख देने को दुख झेल रहा है कोई,
यहां नहीं है कदर किसी को कब जागी कब सोई,
इस दुनिया में संतोष उसी को धीर धरे है जोई ।।
जब दुनिया में आए थे, जग हंसा हम रोई ,
ऐसी करनी कर चलो, हम हंसे जग रोई,
ज्यादा सोच विचारी से काम न बनता कोई,
सुमिरन करले "बांके " को, वो करे सो होई।।
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