...

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द्रुत विलम्बित छंद
द्रुत विलम्बित छंद
( गणतंत्रता )
सुखद है गणतंत्र सदा सदा
समझ लो यह मंत्र स्वतंत्रता।
यह वही दिन वक्त विधान का
लिखित रूप मिला अधिकार का।
अब हमे दिन और सु-धारना
चल चलें पथ देश बुला रहा।
धरम है रख लो सब आन को
ध्वज तिरंगक गा मुसका रहा ।
गगन रंग तिरंग बना रहा
प्रकृति को अपने बदलो अभी।
तन भरो नित देश विधान को
मगन हो तुम गा हित गान को।
सफल हो जिससे गणतंत्रता
नकल लो तुम पूर्वज जो कहे।
अकल को तुम लो अपने जगा।
सफल हो जिससे गणतंत्रता।
--'प्यासा'


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