...

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इस नए शहर में मैं खो-सा गया हूं।
#खोईशहरकीशांति

मंजिलों के नए रास्ते तलाशते-तलाशते,
इस नए शहर में मैं खो-सा गया हूं।

गला भर आया है मेरा, उम्मीदों को ढोते-ढोते,
इस नए शहर में मैं रो-सा गया हूं।

कुंद हो गई हैं मेरी सारी संवेदनाएं,
इंसानों से रगड़ खाते-खाते,
इस नए शहर में मैं सो-सा गया हूं।


याद आती हैं पुराने शहर की वो टूटी गलियां,
किनारे पर खड़ा वो जर्जर होता पुश्तैनी मकान,
बंद पड़े कमरे और बचपन की यादों से भरे वो सामान।

खाट पर बैठ गप्पे लड़ाते, बूढ़े होते दोस्त और
टूटे तिरपाल वाली छोटी सी परचून की दुकान।

हजारों को पीछे छोड़ जब लिस्ट में आया था,
पहली बार मेरा नाम।
बन गया था नायक मैं अपने मुहल्ले का,
थी अपनी भी एक पहचान।
इस नए शहर में तो हूं, बस एक भटकता अनजान,
एक आम-सा इंसान।


अपनी यादों में, फिर एक बार वापस होना चाहता हूं।
मां की गोद में सर रख कर, मैं फिर से सोना चाहता हूं।
दोस्तों से लगकर गले, मैं जोर-जोर से रोना चाहता हूं।

ये सारी बनावटी और झूठी पहचान,
मैं खोना चाहता हूं।

खुद से मिलकर,
मैं एक बार फिर से "मैं" होना चाहता हूं।

© AK