...

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"अपनों से दूर होने पर"
अपनों से दूर होने पर,
समझ आती है ज़िन्दगी..!

कैसी कैसी तकलीफें,
कैसे रुलाती है ज़िन्दगी..!

पहले जैसा नहीं रहता फिर क़िरदार,
पुराने नज़रिये को भुलाती है ज़िन्दगी..!

कोई अपना नहीं जिन्हें,
समझते रहे ताउम्र अपना..!

स्थिर रहकर भी ज़िन्दगी भर,
घुमाती है ज़िन्दगी..!

ख़ुद से दूर अपनों के क़रीब,
जाने को छटपटाती है ज़िन्दगी..!

मौत सा मातम पसर जाता है मन में,
अकेलेपन की दशा में नहीं सुहाती ज़िन्दगी..!
© SHIVA KANT