...

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ख़्वाब बिना
ज़िंदगी ने ख़्वाब बहुत देखे, सुकून के बिना,
रेख़्ते में कोई 'मीर' ना हुआ, जुनून के बिना.

इन राहों पर अब ठहरने का ठिकाना चाहिए.
ज़िंदगी टिके किस पर, किसी सुतून के बिना.

वो खोजता है आज भी, भले बंदों को हर कहीं,
मगर इकराम भी बांटे तो किन में, मम्नून के बिना.

कभी ग़म न देखा है जिसने, कभी चोट न खाई,
भला वो ज़ख़्म भी समझेगा कैसे, ख़ून के बिना.

'ज़र्फ़' पता न लफ़्ज़ों का, न ख़बर जज़्बात की,
सुख़न वो...