...

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ख़्वाब बिना
ज़िंदगी ने ख़्वाब बहुत देखे, सुकून के बिना,
रेख़्ते में कोई 'मीर' ना हुआ, जुनून के बिना.

इन राहों पर अब ठहरने का ठिकाना चाहिए.
ज़िंदगी टिके किस पर, किसी सुतून के बिना.

वो खोजता है आज भी, भले बंदों को हर कहीं,
मगर इकराम भी बांटे तो किन में, मम्नून के बिना.

कभी ग़म न देखा है जिसने, कभी चोट न खाई,
भला वो ज़ख़्म भी समझेगा कैसे, ख़ून के बिना.

'ज़र्फ़' पता न लफ़्ज़ों का, न ख़बर जज़्बात की,
सुख़न वो क्या ही लिखोगा, इस फ़नून के बिना.
© अंकित प्रियदर्शी 'ज़र्फ़'
रेख़्ते - भाषा, ख़ासकर उर्दू भाषा के लिए शब्द (another word for Urdu)
मीर - उर्दू के महाकवि (one of the greatest poets of Urdu)
सुतून - नींव, खंबे (base, pillar)
इकराम- कृपा, उपकार (favour)
मम्नून- कृतज्ञ, जिस पर उपकार किया गया हो (one on whom favour has been bestowed)
सुख़न - काव्य (poetry)
फ़नून - कला (art)
काफ़ी दिनों बाद फिर से राह पाई है,
एक नज़्म जैसे दिल से निकल कर उंगलियों पर आई है.....
Writer's block ने काफ़ी दिनों तक कुछ भी लिखने ना दिया. गलती शायद कहीं मेरी भी थी, जितना वक्त खुद को कोसने में लगाया, उतना अगर लिखने में लगाता तो ये ग़ज़ल शायद और पहले आपके सामने होती. लुत्फ़ लीजिए.
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