...

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◆ अंतिम छोर ◆
हमारा देखना व्यर्थ नही हो सकता
जैसे मैं देख रहा हूँ स्वयं का
" प्रकाश पुंज " ,

व्यय होती जा रही हैं
रश्मियां जिसकी ,
न जाने कब था वो अपने
पूर्ण अवस्था में ,

बीती रातें जब भी देख
पाता हूँ ,,
वो प्रकाश जिसे सोख
लिया है अंधकार ने

वो प्रकाश पुंज होता जा रहा है
अब क्षय
" शनैः शनैः "

शोक संगीत की ऐसी
" यामें "
जिनका सम्राज्य उत्कृष्टता
के परम् पर है ,,

पर कोई कारण अवश्य होगा
जो मुझे विवश करता है
इस अंतिम घड़ी में ,,

विशेष नही पर हृदय में कुछ
विहंग के " स्वर "
सुने जायँगे ,,

कोई तो आखिर वजह मिलेगी
जो देगी " निमित्त "
कुछ ही पल या कुछ ही क्षण
" छटपटाने " की


© निग्रह अहम् (मुक्तक )
【 GHOST WITH A PEN 】