...

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मन मेरा
अंतरनाद कर रहा मन,
विक्ष्प्त सा विचलित मन,
समुद्र सा उठता ज्वार,
साहिल गया तुफां से हार,
कैसी है छाईं घनघोर घटा,
अदृश्य होरही अद्भुत छटा,
अविरल बहती अश्रुधारा,
विरक्त सा चिंतन करता मन,
विक्ष्प्त सा विचलित मन
अंतरनाद कर रहा मन!!