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बिल्ली
बिल्ली का रोना या लड़ना
अपसगुन है,लोग कहते हैं
लेकिन लोग ऐसा क्यूँ कहते हैं
कहीं ऐसा तो नहीं कि
बिल्ली का रोना उन्हें पसंद नहीं
लेकिन बिल्ली का रोना उन्हें क्यूँ नहीं पसंद
बिल्ली ने तो कभी इनके रोने को अपसगुन नहीं कहा
आख़िर ये क्यों रोते हैं
जब जीवन में हताश निराश दुःखी होते हैं
तब रोते हैं,
वैसे ही बिल्ली भी परेशान होती होगी
तो रोती है
वह लड़ती है तो अपने हक के लिए शायद,
जैसे मनुष्य लड़ता है
वह तो ज्यादा ही लड़ता है
उसकी लड़ाई विनाशक होती है
जो इस दुनिया को ही बर्बाद कर दे
तब तो कोई दूसरा प्राणी इन्हें अपसगुन नहीं कहता
तो फ़िर ये कौन होते हैं उन्हें कुछ भी कहने को
इसलिए कि इनके पास बुद्धि है, भाषा है,
संस्कृति और सभ्यता है
इसके ख़ातिर ये दूसरे प्राणियों के जीवन के ठेकेदार बनते हैं?
तो इनसे बड़ा असभ्य कोई नहीं
क्योंकि प्रकृति ने सभी प्राणी को अपना आँचल दिया है
किसी एक का उस पर विशेषाधिकार नहीं
किसी बेजुबान को अपसगुन कहना
उसका हक मारना,
एक असभ्य कार्य नहीं तो क्या है
वैसे ही जैसे यदि मनुष्यों में कुछ शारीरिक या मानसिक रूप से अयोग्य हों ;को कहना
आख़िर पारिस्थितिकी का संतुलन सभी प्राणियों से बनता है
उसमें किसी प्राणी की कमी उसको बिगाड़ सकती है
और अंततः यह ठेकेदार भी असुरक्षित होगा
ख़ुद की और अपने आने वाली पीढी का जान लेगा।