...

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सब बूढ़े... अरे! नहीं
नहीं याद...
कितने सालों पहले
बेटा शहर गया था
आज पोता लौटा है, पोत-बहू के साथ
गाँव की कच्ची सड़क पर
न जाने कैसे
बड़ी सी गाड़ी को सम्भालता हुआ...

आँगन का बूढ़ा नीम
आज भी हरा है
घर की बूढ़ी खपरैल जगह- जगह से जर्जर हो गयी है
बूढ़े दरवाज़े पर लगा
जंग लगा बूढ़ा ताला बिना चाबी के ही...
खुल गया
अंदर थी एक बूढ़ी खाट,
एक बूढ़ी खूँटी,
(जिसने बोझ सम्भाला हुआ था बूढ़े छाते का)
एक बूढ़ा लकड़ी का संदूक
और जिसके अंदर थी...

एक छोटी सी जवान संदूकची
जिसमें थे...
जवान कंगन,
जवान हार,
जवान नथ
और जवान पाजेब
जवान पोता और पोत-बहू
दादा- दादी की जवान निशानियों को लेकर
लौट आए शहर...
अपने घर

और गाँव का घर...
ओह! बताना रह गया
उसे बेचने ही तो गए थे वे गाँव

© Shweta Gupta

#ssg_realization_of_life