...

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वैराग्य...
प्रेम की यात्रा में
जब अंतःकरण
खो जाता है और
रमण करने लगता है
ख़ुद में कहीं भीतर की ओर
तब सब कुछ हो जाता है अरुचिकर
यहां तक कि वह
भूल बैठता है अपने प्रिय की प्रीत भी
परंतु यह अचरज की बात नहीं है
यह वैराग्य भी देन है
उसी प्रिय की विलुप्त होती प्रीति की
जिसे संभाल कर
रख लेना चाहता हैं वैरागी
अपने वैराग्य की स्मृति में
संभवतः इसीलिए
प्रेम का चरम एव अंतिम रूप
वैराग्य में लिप्त मिलता है!...

© 💞 पूजाप्रेम💞