...

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आने लगा है .....
ख्वाबों को बिखरने की आदत हो गयी है शायद अब तो
जिंदगी को भी हालातों से समझौता करना आने लगा है

इक खलिश-सी रहती थी दिल में तेरी नाराजगी के चलते
तुझसे बिछड़कर हर जज़्बात रफ्ता-रफ़्ता धुंधलाने लगा है

वजह पूछती है मेरी तन्हाई मुझसे मोहब्बत में नाकाम होने की
मेरी तन्हाइयों का सच तेरे कसमों-वादों को झुठलाने लगा है

कोई भी काम नामुमकिन नहीं बस कोशिश सच्ची होनी चाहिए
इक-इक पत्थर फेंकने से पानी में भी रास्ता नजर आने लगा है



© आँचल त्रिपाठी