...

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क्या भूलू क्या याद करूँ
क्या भूलूँ क्या याद करूँ
मैं कैसे उन लम्हों का हिसाब करूँ।

चाँद की दूधिया रोशनी में उलझे ख्वाब गिनूँ
या तारे गिनती रातों की बात करूँ
मैं कैसे उन लम्हों का हिसाब करूँ।

बेबाकी से हँसते हुए जो कही थी बातें तुमने
या खामोशी से गुज़रे पलों की बात करूँ
मैं कैसे उन लम्हों का हिसाब करूँ।

वो भूली बिसरी बरसातें, वो फागुन की यादें
किस मौसम को भूलूँ ,किसको याद करूँ
मैं कैसे उन लम्हों का हिसाब करूँ

वो लहरों संग चलते कदमों के निशान लिखूँ
या तूफानों में उजड़े साहिल की बात करूँ
मैं कैसे उन लम्हों का हिसाब करूँ।