...

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आज हु मैं, कल नहीं!
कभी-कभी विश्वास नहीं होता मुझे,
की आज हु मैं, कल नहीं।
जो महसूस कर रहा हु मैं आज ,
कल नहीं कर पाऊंगा,
आज जिंदा हु मैं ,
कल मरजाऊंगा!

मरने के बाद क्या होगा?
कई धर्मों ने जताया है,
लेकिन प्रामाणिकता किसके पास है,
क्या किसी ने लौट कर कुछ बताया है?

एकांत अनंत में, मैं कहीं खो ना जाऊं,
मेरा मन कैसे टिकेगा वहा?
जब 'मैं' खत्म हो जाऊंगा,
बस निर्विचार आत्मा रह जाएगी जहां।

अब मुझे सोचने दो की,
क्या इस क्षणिकता में भी कोई दीर्घता है?
कुछ तो सार होगा इस भगवान के दिए जीवन का,
या बस नमूना हु मैं प्रकृति का?


do follow..

© Kuldeep_Saharan