...

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बेखुदी
जान पाएगा कहां मुझे ये आसमां और जमीं।
सितारों पर है घर मेरा कहीं जो ठहरता ही नहीं।
क्यों उम्मीद - ए - नाउम्मीदी से गुफ्तगू करे कोई?
जिसकी थी प्यास मुझे वो ज़िन्दगी कभी मिली ही नहीं।।
एक रंज है बेखुदी से जिसे हादसों से कोई शिकायत हुई ही नहीं।
आदतें है बेशुमार जिनसे ख़ुद का कोई वास्ता कोई बताएं नहीं।
रूह से पूछा हमनें की है कहां ख़ुद का पता ?
वो पता जो मिला हमें वो पता हकीकत में है कहीं भी नहीं।।
© ज़िंदादिल संदीप