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वफ़ा जब से तिजारत बन गई: - ग़ज़ल
हर किसी लब की शिकायत बन गई
ज़िंदगी मेरी कयामत बन गई
मैने सोचा था मुहब्बत में तेरे
उम्र भर की मैं ज़रूरत बन गई
अब मुझे इससे रिहाई क्या मिले
अब ये तन्हाई तो आदत बन गई
तुम मिले तो खिल गई दुनिया मेरी
और फलक पे एक जन्नत बन गई
रौनकें उड़ने लगी दिल की यहां
ये वफ़ा जब से तिजारत बन गई।।
©अनन्या राय पराशर
© Ananya Rai Parashar
ज़िंदगी मेरी कयामत बन गई
मैने सोचा था मुहब्बत में तेरे
उम्र भर की मैं ज़रूरत बन गई
अब मुझे इससे रिहाई क्या मिले
अब ये तन्हाई तो आदत बन गई
तुम मिले तो खिल गई दुनिया मेरी
और फलक पे एक जन्नत बन गई
रौनकें उड़ने लगी दिल की यहां
ये वफ़ा जब से तिजारत बन गई।।
©अनन्या राय पराशर
© Ananya Rai Parashar
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