...

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बस यू ही
PREEET

कुछ ऐसे गुजरती है जिन्दगी कि एक लाश
को लिए फिरते है कभी कंधों पर वजन रहता
है कभी जिमेवारी कभी गमों का साया
रहता है मेरे पास तो हर कोई नया दरद
आया रहता है कभी कभी यू ही बस
मन भर जाता है भागते भागते जिन्दगी
मे और चाहती है जिन्दगी की कुछ सुकून
सा मिले पर सुकून कहाँ है ढूंढते है बहुत दूर
तक वापिस आ जाते है फिर वही पर जहाँ
आशियाना है हां यही पर सब है अपने है
पर अपना कोन है अपना तो कोई नही
अपने और अपना बहुत फर्क महसुस होता है
जब देखता है नजर को कहीं घुमाकर तो सब घर
अपने लगते है पर अपना घर कोई नही है
सुबह से शाम बस काम की तलाश मे
एक जिन्दा लाश मे एक बन्द पिंजरे मे
खुद को लपेटकर कर एक चादर की तरह
फिरते रहते है जैसे कोई जंगल मे रस्ता ढूंढता है
हजारो तरफ पैर चलते है पर जाना कहाँ है PREEET
कुछ मालुम नही चलता पर जाना तो है यह नश्वर
मिटटी का जिस्म छौड कर त्याग कर सब कुछ
एक गुमनाम जगह पर जहाँ कोई अपना ना हो
वैसे यहाँ भी कोन अपना है सब सपना है जिन्दगी
जी रहे है सपनो की जिन्दगी खयालो
के साथ मात्र सब कलपनाये है मेरी कोई अपना नही है
बस इस संसार के पार मिलना है सबसे एक दीपक की लो
की तरह कुछ दिलो मे करनी है रोशनी एक ख्याब ही तो है
हाँ कभी कभी मेरे दिल मे ख्याल आता है ।।

💞💞
© आवारा पागल दीवाना