...

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ना जाना तुम्हें
ना जाना तुम्हें इतना,
फिर क्यू मन तुम्हें सोचने लगा, मन मेरा बहक ने लगा
ऐसे थी न मैं, अपने दुनिया में मन-मौजी रहती थी
न में अब रही मौजी, मन मेरा मचल ने लगा..
इंतज़ार करु में तुम्हें देखने की, बात करने कि, पता नहीं चलता कब घड़िया बित जाती हैं,
और बिछड़ जाने का वक्त आ जाता है..
ना जाना तुम्हें इतना,
तो फिर क्यों तुम अपने लगने लगे
सबको पता ,ये वो राज़ है मेरा, लब्ज़ नहीं चेहरा काफ़ी है मेरे अनकहें जज़्बात को कहने के लिए
तुम्हें नहीं पता चलता, न हम कह पाएंगे कभी
यही सिलसिला चलता जा रहा है हमारा..
ना जाना तुम्हें इतना....

-Feel through words
© Feel_through_words