...

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मां सी
वो सुबकती रही
अपने आंचल के सिरे से आंसुओं को पोंछे
याद करती रही मां को,
नई नवेली पत्नी
मां के गुणों में ढल रही थी
आज समझ रही थी
मां के वैसे होने का राज़
क्यूं मां पलट कर जवाब नहीं देती थी
कैसे मां छुपा लिया करती थी दर्द के
साथ दुःखों को
वो आज मां सी लग रही थी
बस अपने गुस्से को बहाती रही
और पुछती रही, आखिर
दोष किसका
समाज का या
आदमी के अभिमान का ।