तुम्हारा मिलना ...
सुनो न, कहानियां तुमने सुनी भी होंगी और सुनाई भी ,
आज कुछ वक्त मेरी कहानी को भी दे ही देना ।
किस्सा कुछ रोज पहले शुरू हुआ,
तुमसे मिलना कुछ इत्तेफाक सा था ।
देखता तुम्हें हर कोई था शायद
मगर बंद आँखों से तेरे लफ्ज़ो को, किसी ने न सुना होगा ।
वो मिलना उनसे कुछ इस कदर हुआ कि
चंद लफ्ज़ो में बस हल्का सा ज़िकर हुआ ।
न उसने कुछ कहा और न हमने कुछ कहा
बस साथ होने का एहसास था, दोनों को हुआ।
ज़िन्दगी दोनों की, बहुत जुदा-जुदा सी थी
एक के आँगन में तमाम जमाने की खुशियां
तो दूजे के पास बस अश्क़ भरे ग़म ही थे ।
फिर भी न जाने कौन सी डोर थी,जो
उन दोनों को करीब खींच ही लाई थी ।
पल में बातें, वो कौन है से ,आप ठीक हो न पर चली आई थी।
हाँ उसकी आवाज़ की कशिश में भूल बैठी वो अपना कल
और वो मुस्कुराहट पर बहक गया उसका भी संगदिल ।
वक़्त रुकने का नाम नही ले रहा था और हर एक पल
के साथ जैसे वो ख़ुद को उसमें भूले जा...
आज कुछ वक्त मेरी कहानी को भी दे ही देना ।
किस्सा कुछ रोज पहले शुरू हुआ,
तुमसे मिलना कुछ इत्तेफाक सा था ।
देखता तुम्हें हर कोई था शायद
मगर बंद आँखों से तेरे लफ्ज़ो को, किसी ने न सुना होगा ।
वो मिलना उनसे कुछ इस कदर हुआ कि
चंद लफ्ज़ो में बस हल्का सा ज़िकर हुआ ।
न उसने कुछ कहा और न हमने कुछ कहा
बस साथ होने का एहसास था, दोनों को हुआ।
ज़िन्दगी दोनों की, बहुत जुदा-जुदा सी थी
एक के आँगन में तमाम जमाने की खुशियां
तो दूजे के पास बस अश्क़ भरे ग़म ही थे ।
फिर भी न जाने कौन सी डोर थी,जो
उन दोनों को करीब खींच ही लाई थी ।
पल में बातें, वो कौन है से ,आप ठीक हो न पर चली आई थी।
हाँ उसकी आवाज़ की कशिश में भूल बैठी वो अपना कल
और वो मुस्कुराहट पर बहक गया उसका भी संगदिल ।
वक़्त रुकने का नाम नही ले रहा था और हर एक पल
के साथ जैसे वो ख़ुद को उसमें भूले जा...