...

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खोयी हुयी जिन्दगी...
ना फैलाया है हाथ कभी, ना मांगी है भीख मोहब्बत की चँचल शोख़ हासीनाओं से,
है इश़्क किया बस अपने से, उस अपनेपन के कुछ सपने से,
ना फँसी कभी कोई डोर प्रीत की,
उनके हाथों की उंगलियों में,
जो था घड़ी उसके हाथों का ,
ना बताया समय कभी महबूबा से मुलाकातों का,
डूबे ना कभी जो मदमस्त नैन नजारों में,
आधी बीती रातों में या प्रेम भरे इशारों में,
नाजुक है दिल पर सख़्त है मन, है खुद से ही थोड़ी अनबन,
थामा था हाथ जिम्मेदारी का जैसे ही बिता उनका बचपन,
है हाड़ मास के पुतले वो भी,
है उनका भी एक कोमल मन,
हक़दार है वो भी मोहब्बत के,
कुछ प्यार भरे लामहातों के,
चूम हथेली जताने शुक्रियतों के,
जीने को दिल से कुछ खूबसूरत लमहातों के,
थोड़ी नोकझोक, थोड़ा लाड़ प्यार, कभी कभी कुछ मिठी टकरार,
की है कहीं किसी जिम्मेदारी मे दबी,
उनकी भी एक अपनी जिन्दगी,
उमर से भी पहले जो हो चुके है बड़े,
उन बड़े लड़को की एक खोयी हुयी जिन्दगी_!!!
© दीपक