...

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मैं...
ज़िंदगी में कुछ सपनो की दरकार में
और कुछ अपनों से तकरार में
अक्सर चुप रहता था मैं
मन की पीड़ को छुपा कर
खामोश आज हुआ हूं मैं
दूर शहर की हर गलियों मे
जंगल-पहाड़ और समंदर के
किनारे घूम लेता था मैं
खुद की परछाई में सिमटकर
अंजान सा मुसाफिर आज बना हु मैं
दोस्तों की मस्ती मै, कभी मनोरंजन की
मजबूरिओं से हस लेता था मैं
अपनी खामोशियों से मिलकर मुस्कुराना
आज सीखा हु मैं...✍
jaswinder chahal
25/6/2024


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