...

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Meri Zindagi ki kahaani Meri zubaani
अंजान चेहरे है,अंजान ये दुनिया है;
बेबस हूं मै और खुदगर्ज ये जमाना है;
करोड़ों की भीड़ में अपनों को ढूंढता;
कुछ तो मिलते ही नहीं और कुछ मिलकर भी नज़रे फेर लेता;
गैरों से क्या नाराज़गी, जब अपनों ने ही साथ छोड़ दिया;
आज तो ऐसी घड़ी आयी है कि खुद की परछाई ने भी मुंह मोर लिया;
आज ना ही किसिसे कुछ कहता हूं और ना ही खुद रो पाता हूं;
बस एक बेजुबान पत्थर सा ज़िन्दगी को जीता हूं;
मै जानता हूं कि इस दुनिया में हर इंसान दुखी है;
पर मेरी ज़िन्दगी में तो अब दुख की भी जगह नहीं है;
मुझे नाही किसीसे नफरत और नाही कोई सवाल है;
बस अपनी किस्मत की लकीरों पे तरस आती है;
कई बार इस दुनिया से कहीं दूर जाना चाहता था;
पर मां- बाप का प्यार वापस यही खीच लाता था।।।
© anirban